शकील अख्तर
राहुल इसी के खिलाफ लड़ रहे हैं और उनकी इस बड़ी लड़ाई से ध्यान हटाने के लिए ही उन पर ही हमला किया जा रहा है। अभी हमले और बढ़ाए जाएंगे। मगर एक बात वह नहीं समझ रहे कि जो आदमी बीस साल के लगातार हमलों के बाद भी आज डटा हुआ हो क्या वह अपने ऊपर होने वाले किसी हमले के डर से चुप बैठ जाएगा। वह कोई आडवानी, उमा भारती, तोगड़िया, मुरली मनोहर जोशी, विनय कटियार हंै कि डराओगे तो डर जाएगा।
जाति क्यों नहीं पूछ सकते? शादी में जाति सम्मेलनों में बिल्कुल पूछ सकते हैं। वंशावली भी मांग सकते हैं। लेकिन बस में, ट्रेन में संसद में बिल्कुल नहीं पूछ सकते।
सरकार अगर मानती है कि जाति के आधार पर अन्याय हुआ है तो वह जाति पूछ सकती है। यह मालूम करने के लिए किस-किस के साथ अन्याय हुआ है कब से हो रहा है और अब उसे क्या सुविधाएं देकर दूसरों के बराबर लाया जा सकता है?
बिहार में ऐसा अभी पिछले साल ही किया गया। भाजपा सहित सभी दलों की मंजूरी के बाद। मगर उसी बिहार में व्यक्तिगत हैसियत से किसी से कह के देख लीजिए कि 'जिनकी जात का पता नहींÓ! आपको मालूम पड़ जाएगा कि इस गाली का क्या मतलब होता है! अनुराग ठाकुर वहां किसी दलित टोले, पासवान टोले, कुर्मी टोले, यादव टोले, मांझी केवट टोले कहीं भी किसी गांव में जरा कह के देखें जिसकी जात का पता नहीं!
भाजपा के नेता, मीडिया, भक्त सब बड़ी मासूमियत से कह रहे हैं कि राहुल जब सबकी जाति मालूम करने की बात कर रहे हैं तो उनकी पूछने में क्या हर्ज है?
बिल्कुल नहीं! एकदम कोई हर्ज नहीं! अभी संसद का सत्र चल रहा है। सोमवार को ही प्रधानमंत्री सदन में घोषणा कर दें। जाति गणना होगी। और सरकारी कर्मचारी को भेज दें राहुल के यहां। वे जाति गणना का फार्म भरेंगे। मांगी हुई जानकारी देंगे साथ ही जनगणना भी करवा लें। विवाहित, अविवाहित, परितक्यत, शिक्षा सब जानकारी देंगे।
मगर आप गाली नहीं दे सकते। किसी को भी नहीं। जरा गांव में पूछिए जाकर। जिसकी जात का पता नहीं उसका मतलब क्या है? उसका मतलब है जिसकी कोई औकात नहीं!
गांव में यह गाली की तरह इस्तेमाल होता है कि जिसकी जात का पता नहीं वह हमसे बात कर रहा है। मतलब हमसे बात करने का हक कुल गौत्र वाले को ही है। जात का पता नहीं बाप का पता नहीं यह कमजोर को दी जाने वाली देश की सबसे पुरानी और बड़ी गाली हैं। अपमानित करने के उद्देश्य से, श्रेष्ठता भाव से, अहंकार से दी जाती है।
मगर जो पूरी तरह डि कास्ट (जातीय श्रेष्ठता बोध से मुक्त) हो चुका हो वह इसके जवाब में क्या कहता है? वह कहता है मुझे मालूम है जो भी इस देश में गरीब कमजोर दलित पिछड़े आदिवासी की बात करेगा उसे गालियां खाना पड़ेंगी। और मैं अपने कमजोर भाइयों के लिए खुशी से यह गालियां खाने को तैयार हूं।
राहुल ने बहुत सही कहा। और यहां याद आ गया तो एक बात और बता दें। हम 2004 से जब राहुल पहला चुनाव लड़ने अमेठी गए थे तब से उन्हें लगातार कवर कर रहे हैं। उससे पहले भी कभी-कभी कुछ लिखा।
जाने कितनी बार उनका नाम लिखा होगा। टीवी रेडियो पर बोला होगा। ज्यादातर राहुल ही। और हम ही नहीं दूसरे पत्रकार भी उन्हें राहुल लिखते हैं। आमने सामने संबोधित करने में भी राहुल ही। अभी खुद राहुल ने लोकसभा में बोलते हुए कहा कि जब वे कारपेन्टरों से मिल रहे थे तो विश्वकर्मा ने कहा राहुल! उनकी इस बात पर सत्ता पक्ष चिल्लाने लगा कि राहुल या राहुल जी। राहुल ने बेमन से कहा कि ठीक है राहुल जी।
मगर इससे क्या समझ में आया कि बातचीत में आदमी अपने लिए किए संबोधन को उसी रूप में बताता है जैसा सुनना चाहता है। जैसे बहुत सारे लोग खुद ही अपने सरनेम के साथ जी लगाकर बोलते हैं कि उसने हमसे कहा फलाने जी।
आफिसों में कुछ खुद के साथ सर लगाकर अपने साथ हुई बात को बताते हैं। मतलब राहुल को आमतौर पर न राहुल गांधी बोला जाता है और न राहुल अपने नाम के साथ लगाए जी को सुनते हैं। वे केवल राहुल हैं। चाहें तो मजाक में कह सकते थे दिनकर की पंक्तियां दोहराते हुए कि-
'पूछो मेरी जाति, शक्ति हो तो, मेरे भुजबल से,
मेरे रोम रोम में अंकित है मेरा इतिहास!'
अर्थात मुझे जानना है, मुकाबला करना है तो जनता में आइये। रात-दिन मेरी आलोचना करके, चरित्रहनन करके, ट्रोल करके न मुझे जान सकते हो न मेरे गौरवशाली इतिहास को।
झूठ का ऐसा परनाला बहा रखा है कि राहुल के परिवार पर ही सवाल उठा रखे हैं। और कम पढ़े-लिखे ठस बुद्धि के लोग ही नहीं, पढ़े-लिखे भी उन झूठे व्हट्स एप मैसेजों को आगे बढ़ाते रहते हैं।
राहुल का धीरज और सहनशीलता कमाल की है। ऐसी ऐतिहासिक चरित्रों में ही दिखती है। राम के साथ क्या-क्या नहीं किया गया। मगर सिर्फ एक बार को छोड़कर वे कहीं क्रोध में नहीं दिखते। केवल तभी जब कहते हैं गए तीन दिन बीत। बोले राम सकोप तब...!
रामधारी सिंह दिनकर जिन्होंने रश्मि रथी में कर्ण का इतिहास लिखा है। लेकिन सवाल पूछने वालों से यह भी कहा है कि-
मूल जानना बड़ा कठिन है नदियों का वीरों का
धनुष छोड़कर और गोत्र होता है क्या रणधीरों का?
लोकतंत्र में उसी धनुष का मतलब कमजोर की आवाज उठाना हो जाता है। लेकिन दिनकर राहुल के ग्रेट ग्रैंड फादर जवाहर लाल नेहरू पर लिखकर इस परिवार पर हमेशा छाए रहे खतरे का इतिहास बता चुके हैं।
गांधीजी की हत्या के बाद उन्होंने लिखा था-
'समर शेष है अभी मनुज भक्षी हुंकार रहे हैं
गांधी का पी रुधिर जवाहर पर फुंकार रहे हैं
समर शेष है, अहंकार इनका हरना बाकी है।'
वही अहंकार बाकी है। जो पूरी निर्लज्जता से उस नेहरू के वंशज से कह रहा है जिसके पिता, दादी देश के लिए शहीद हो गए कि इनकी जात का पता नहीं।
नहीं है! सही में नहीं है। किसी को नहीं है। नाम राहुल है। हिन्दू। जाति हिन्दुस्तानी। डिकास्ट हमने लिखा ना। बहुत मुश्किल काम है हमारे यहां।
डिक्लास ( अपनी आर्थिक स्थिति को भूलकर गरीबी समझने की कोशिश) होते हैं। कुछ हद तक। मगर डिकास्ट होने वाले तो गिनती के लोग होंगे। जो कथित ऊंची जाति में विश्वास नहीं करते और कथित छोटी जाति को हीन नहीं मानते।
राहुल का उद्देश्य बड़ा है। इसलिए उसे असफल करने के लिए खुद प्रधानमंत्री मोदी ने अनुराग को शाबाशी दी। गाली को मजाक बताते हुए उनका वीडियो रिलीज किया और कहा कि सुनें।
बिल्कुल सुनना चाहिए देश के उन सब लोगों को सुनना चाहिए जिनसे सदियों से जात पूछी गई। यहां तक कि छोटी-मोटी चोरी के मामले में भी जाति घुसा दी गई। जिनकी जात पता नहीं उनके लिए ही तो कहा जाता है चोरी ... च...री!
राहुल इसी के खिलाफ लड़ रहे हैं और उनकी इस बड़ी लड़ाई से ध्यान हटाने के लिए ही उन पर ही हमला किया जा रहा है। अभी हमले और बढ़ाए जाएंगे। मगर एक बात वह नहीं समझ रहे कि जो आदमी बीस साल के लगातार हमलों के बाद भी आज डटा हुआ हो क्या वह अपने ऊपर होने वाले किसी हमले के डर से चुप बैठ जाएगा। वह कोई आडवानी, उमा भारती, तोगड़िया, मुरली मनोहर जोशी, विनय कटियार हंै कि डराओगे तो डर जाएगा।
यही तो समस्या है कि नेहरू-गांधी परिवार का वंशज डरता नहीं है। वह जनता के लिए गालियां खाने से लेकर अपनी एसपीजी की सुरक्षा छीन लेने, संसद सदस्यता खतम कर देने, मकान से निकाल दिए जाने, बीसीयों झूठे मुकदमे चलाए जाने, ईडी के छापों- किसी से नहीं डरता।
और वह क्या मोतीलाल नेहरू से लेकर आज तक कोई नहीं डरा। और इसका तो नारा ही है-'डरो मत!'
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)